दो दिवसीय, द्वितीय विश्व वैदिक सम्मेलन २०२५ सूरत, गुजरात में सम्पन्न

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सूरत, गुजरात : गीता जयंती / मोक्षदा एकादसी को  १ और २ दिसम्बर २०२५ को सूरत, गुजरात में दो दिवसीय विश्व वैदिक सम्मेलन  का सफलतापूर्वक आयोजन किया गया । जिसके अंतर्गत १ दिसम्बर को विश्व क्रिया कुण्डलिनी योग सम्मेलन और २ दिसम्बर को तृतीय विश्व वैदिक सुक्ष्मजैविकी सम्मेलन का आयोजन हुआ । सम्मेलन  का आयोजन महर्षि वेदव्यास इंटरनेशनल वर्चुअल वैदिक यूनिवर्सिटी, वैदिक माइक्रोबायोलॉजी वर्चुअल यूनिवर्सिटी, इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ़ वैदिक हिन्दू यूनिवर्सिटीज, एसोसिएशन ऑफ़ वैदिक वर्चुअल यूनिवर्सिटीज, वैदिक वर्चुअल विद्यापीठ (ट्रस्ट), इंटरकांटिनेंटल वैदिक हिन्दू वर्चुअलऋषिकुलम (OPC)Pvt. Ltd., सागिराजू फाउंडेशन (तेलंगाना), सेंटर फॉर धर्म प्रैक्टिस (USA), आयुष मन्दिरम् (रेवाड़ी, हरियाणा), हिमालयन तन्त्रविज्ञान विश्वऋषिकुलम (हिमाचल प्रदेश), वेदांग होलिस्टिकस (ऑस्ट्रेलिया) आदि संस्थानों ने संयुक्त तत्त्वाधान में किया। यह सम्मेलन  देश विदेश की प्रतिष्ठित चुनिन्दा वैदिक वैज्ञानिकों के साथ मिलकर आयोजित किया गया। सम्मेलन में विदेश से पधारे विशेष अतिथियों का सहर्ष स्वागत किया गया यथा – थाईलैंड के डॉ. स्वामी श्री भानुपुत्र मंगलानंद जी महाराज जो सुरेन्द्र राजभाट यूनिवर्सिटी में कार्यरत है, ऑस्ट्रेलिया से डॉ. वर्षा पारकर (वेदांग होलिस्टिकस), कनाडा से डॉ. आदिश्री जतिंदर सिंह ने भाग लिया । विदेश से आये अथितियों के स्वागत के पश्चात, दीप प्रज्जवलन किया गया। सम्मेलनों के संयोजक -प्रभारी डॉ. चक्रधर फ्रेण्ड ‘वेदनिपुण’ (अध्यक्ष, इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ वैदिक हिंदू यूनिवर्सिटीज़ और मैनेजिंग ट्रस्टी, वैदिक वर्चुअल विद्यापीठ) ने सम्मेलन  का प्रारम्भिक भाषण दिया और सम्मेलन  के आदर्श वाक्य (स्लोगन) यथा – “सर्वेषामेव भूतानां वेदश्चक्षुः सनातनम्” और “सर्वभूतात्मभूताय कूटस्थायै नमो नमः” का व्यापक आध्यात्मिक अर्थ वेदों के परिपेक्ष्य में और कूटस्थ – क्रिया योग महत्त्व को आज के परिवेश में समझाया । डॉ. चक्रधर फ्रेण्ड ने महावातार महामुनि क्रिया योग बाबाजी, योगिराज श्री श्यामचरण लाहिरी महाशय जी, योगमनस्वी श्री पद्मकांत ठाकुर ‘भगवान्’ जी के विषय में क्रिया योग के परिपेक्ष्य में जानकारी साँझा की। वेद पाठ और क्रिया योग की अभिन्नता को उजागर किया। और दो दिवसीय सम्मेलन  की रुपरेखा प्रस्तुत की ।

इस  अवसर पर डॉ. चक्रधर फ्रेण्ड द्वारा लिखी पुस्तक “कुण्डलिनीयोगऋषिज – कुण्डलिनीयोगदर्शन – द इटरनल वैदिक इंटेलिजेंस” जो अंग्रेजी भाषा में लिखी गयी है का विमोचन किया गया । इस पुस्तक में कुण्डलिनीयोगऋषि डॉ. शिव बचन साहा सिद्धपुरुष जी के जीवन और उनके कुण्डलिनी  योग साधना के  विषय में विशेष रूप से प्रकाश डाला गया है । डॉ. चक्रधर फ्रेण्ड ने कुण्डलिनीयोगदर्शन को भारत का डीएनए बताया ।  श्री रामावतार शुक्ल जी ने इस शुभ अवसर पर श्रीमद्भगवद्गीता गीता का पाठ किया ।

थाईलैंड के डॉ. स्वामी श्री भानुपुत्र मंगलानंद जी महाराज (सुरेन्द्र राजभाट यूनिवर्सिटी, थाईलैंड) ने योग विषय पर अपने विचार सबके समक्ष प्रस्तुत किया, थाईलैंड में वेदों और योग के प्रचार प्रसार के बारे में विस्तृत चर्चा की ।  डॉ. वर्षा पारकर जी ऑस्ट्रेलिया में सनातन धर्म, वैदिक विज्ञान, योग आदि पर चल रहे कार्य के विषय में अपने विचार प्रस्तुत किये ।  तन्त्रशिरोमणि डॉ. विश्वजीत विश्वासी जी (हिमाचल प्रदेश) ने तन्त्रविज्ञान पर विशेष डाक्यूमेंट्री फिल्म का प्रदर्शन किया और साथ ही साथ उनके प्रोजेक्ट – Coastal Demonology, जो गोवा – कोकण कोस्टललाइन में चल रहा पर विशेष जानकारी दी और उन्होंने भारत सरकार द्वारा भारतीय ज्ञान परम्परा (Indian Knowledge System) को नई शिक्षा नीति (NEP 2020) में समावेश के बारे में बताया । तन्त्रशिरोमणि डॉ. विश्वजीत विश्वासी जी ने महर्षि वेदव्यास इंटरनेशनल वर्चुअल वैदिक यूनिवर्सिटी के १५ वर्ष पुरे होने के उपलक्ष्य में यूनिवर्सिटी के अब तक कार्य को विस्तृत रूप से बताया । डॉ. मोहन केशव फड़के (पुणे, महाराष्ट्र) जी ने मन्त्र और तन्त्र विज्ञान द्वारा समग्र मानव का कल्याण कैसे हो सकता है यह बताया, मन्त्र और तन्त्र विज्ञान के द्वारा उन्होंने देश विदेश के अनेकों लोगो को रोगों और प्राकृतिक आपदा से कैसे बचाया, ये जानकारी प्रदान की और अपनी पुस्तक वितरिक की । डॉ. समप्रसाद विनोद जी (पुणे, महाराष्ट्र) ने उनके व्यक्तिगत जीवन में योग विज्ञान के महत्त्व को बताया और उनके पिता जी श्री महर्षि विनोद जी योग से सिद्धि प्राप्त के विषय में बताया । डॉ. कंगना यादव (मेरठ, उत्तर प्रदेश) जी ने भी योगिक जीवन की महत्ता पर बल दिया । डॉ. के. वि. न. सवन कुमार ने ज्योतिष, वास्तु और कुण्डलिनी के सामंजस्य पर विस्तृत चर्चा की। डॉ. प्राजक्ता (कोंकण, महाराष्ट्र) ने बताया की वे ग्रामिण परिवेश में योग और गीता पाठ का प्रचार प्रसार के उनके निजी अनुभव को बताया । डॉ. श्रीजी कुरूप (सेंटर फॉर एनवायरनमेंट स्टडीज, त्रिवेंद्रम, केरल) ने क्रिया योग के प्रचार प्रसार में  श्री श्यामाचरण संघ और श्री श्यामाचरण योगपीठ, बौंसी के योगदान के बारे में संक्षेप में बतलाया । रिमझिम (पटना, बिहार) ने कुण्डलिनी योग दर्शन के विषय में प्रकाश डाला । अमिश सरैया जी (सूरत, गुजरात) ने गीता में निहित आरोग्य से सम्बंधित श्लोकों के बारे में बताया । प्रकाश माली जी (उकाई, गुजरात)  ने ‘जगत हितकारनी’ पुस्तक के विषय में बताया जिससे जगत का कल्याण हो । चित्रा चौधरी जी (आकाशवाणी, भुज, गुजरात) ने आज के युग में वैदिक सम्मेलन  के द्वारा भारतीय ज्ञान परम्परा के प्रचार प्रसार के महत्त्व पर प्रकाश डाला। रोहित गरोडिया जी ने सनातन हिन्दू धर्मं के समक्ष उपस्थित चुनौतियों पर ध्यान केन्द्रित किया । तुषार चौटे जी ने ज्योतिष द्वारा अपने जीवन में मनुष्य में मुलभुत परिवर्तन कर कैसे सफलता प्राप्त करे इस बात को विस्तार से चर्चा की । डॉ. आदिश्री जतिंदर सिंह जी ने कनाडा और पाश्चात्य देश में लोगो के नकारात्मक मनोवैज्ञानिक स्थिति के विषय में चिंता जताया और योग-ध्यान के महत्त्व को बताया । डॉ. नितिन सरदेसाई जी ने mysticism (रहस्यवाद) और मॉडर्न साइंस पर व्याखान दिया ।

पुरस्कार : इस सम्मेलन  में कई विशिष्ट व्यक्तियों को पुरस्कार से सम्मानित किया गया । डॉ. समप्रसाद विनोद जी, रिमझिम, प्रकाश माली, डॉ. श्रीजी कुरूप, डॉ. वर्षा पारकर, डॉ. के. वि. न. सवन कुमार, रामावतार शुक्ल जी, को कुण्डलिनी योग दर्शन पुरस्कार से सम्मानित किया गया । तन्त्रशिरोमणि डॉ. विश्वजीत विश्वासी जी (हिमाचल प्रदेश) को तन्त्रविज्ञान के क्षेत्र एक नए यन्त्र यथा – ‘तपस’ को विकसित करने हेतु तन्त्र टेक्नो-साइंटिफिक एक्सीलेंस अवार्ड प्रदान किया गया ।  डॉ. आदिश्री जतिंदर सिंह, Dr. Antonietta Cordasco (Italy), डॉ. कंगना यादव एवं प्राजक्ता तीरावडेकर  को वेदोहम् भारत वेदव्यासोलोजी तथा वेदमाता गायत्री -वैदिक ऋषिका पुरस्कार प्रदान किया गया । डॉ. मोहन केशव फड़के जी को वैदिक मन्त्र चिकित्सा पुरस्कार प्रदान किया गया ।

दीक्षांत समारोह : महर्षि वेदव्यास इंटरनेशनल वर्चुअल वैदिक यूनिवर्सिटी द्वारा डॉ. विश्वजीत विश्वासी जी (हिमाचल प्रदेश) को डी.तन्त्र.लिट् की पोस्ट डाक्टरल डिग्री के साथ गोल्ड मैडल प्रदान किया गया । डॉ. आदिश्री जतिंदर सिंह जी (कनाडा) को पीएचडी इन वैदिक स्टडीज की डिग्री, डॉ. निलावरसी परसुरमण (तमिल नाडू) को पीएचडी इन वैदिक मनोविज्ञान (साइकोलॉजी) की डिग्री, डॉ. सागिराजू सुनीता (तेलंगाना) को आनरेरी पीएचडी इन वैदिक आध्यात्म (Spirituality), अनुश्री सरैया (सूरत, गुजरात) को बैचलर इन वैदिक स्टडीज की डिग्री; टिक्कन राम एवं विवेक वर्मा (हिमाचल प्रदेश) को डिप्लोमा इन तन्त्र स्टडीज (रितुअल्स) की डिप्लोमा प्रदान किया गया ।

थाईलैंड के डॉ. स्वामी श्री भानुपुत्र मंगलानंद जी महाराज को महर्षि वेदव्यास इंटरनेशनल वर्चुअल वैदिक यूनिवर्सिटी में योग विज्ञान में योगाचार्य प्राध्यापक पद से सम्मानित किया गया ।

तन्त्र आध्यात्मिक दीक्षा : थाईलैंड के डॉ. स्वामी श्री भानुपुत्र मंगलानंद जी महाराज एवं एकोपोल कुम्पेट (श्री वरापुत्र देवदास ब्रह्मचारी), कनाडा की डॉ. आदिश्री जतिंदर सिंह जी को तन्त्रशिरोमणि डॉ. विश्वजीत विश्वासी गुरुजी ने तन्त्र दीक्षा प्रदान किया ।

घोषणापत्र  : द्वितीय विश्व वैदिक सम्मेलन  का घोषणापत्र संस्कृत और हिन्दी में डॉ. चक्रधर फ्रेण्ड ‘वेदनिपुण’ एवं अंग्रेजी में डॉ. श्रीजी कुरूप जी ने पढ़ा । घोषणापत्र पर सभी उपस्थित देश विदेश के वैदिक वैज्ञानिक और बुद्धिजीविओं ने हस्ताक्षर किया ।

दूसरे दिन, ऋषि अथर्व-कण्व सत्र, तीसरे विश्व वैदिक माइक्रोबायोलॉजी सम्मेलन को समर्पित था, जिसका विषय “वैदिक पंचमहाभूत माइक्रोबायोलॉजी” था।

अथर्वकण्वकुलाधिपति डॉ. चक्रधर फ्रेंड ‘वेदनिपुण’ ने वैदिक माइक्रोबायोलॉजी के अन्तर्गत एक नई शाखा के रूप में “वैदिक पंचमहाभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) माइक्रोबायोलॉजी” प्रस्तुत किया, जिसमें सूक्ष्मजीवों (जैसे बैक्टीरिया, प्रोटोजोआ, फफूंद, वायरस आदि) को पांच तत्वों और वात, पित्त और कफ के आयुर्वेदिक सिद्धांतों से जोड़ा गया। उन्होंने आयुर्वेदिक सिद्धांतों के आधार पर एक अभूतपूर्व वैचारिक निष्कर्ष बताया, जिसमें कहा गया है कि बैक्टीरियल बायोफिल्म (Bacterial Biofilm) का निर्माण कफ दोष के असंतुलन के समान है। बायोफिल्म जटिल, चिपचिपे सूक्ष्मजीव समुदाय होते हैं – जो स्वयं निर्मित बाह्यकोशिकीय पॉलीमरिक पदार्थों (EPS) में लिपटे होते हैं – जो सतहों से चिपक जाते हैं। यह सुरक्षात्मक, चिपचिपी मैट्रिक्स स्यूडोमोनास एरुगिनोसा (Pseudomonas aeruginosa), स्टैफिलोकोकस ऑरियस (Staphylococcus aureus) और ई. कोलाई (E. coli) जैसे सामान्य रोगजनकों को पनपने देती है। यह समानता बताती है कि बायोफिल्म की यह घनी, सुरक्षात्मक और स्वाभाविक रूप से चिपचिपी प्रकृति अतिरिक्त कफ (जो आयुर्वेद में संरचना, स्नेहन और स्थिरता के लिए जिम्मेदार है) के गुणों के समानांतर है, जो पुराने, उपकरण-संबंधित और घाव के संक्रमण को समझने और संभावित रूप से इलाज करने के लिए एक नया वैचारिक ढांचा प्रदान करती है। आगे डॉ. सी. फ्रेंड ने कहा कि- बैक्टीरियल बायोलुमिनसेंस (bacterial bioluminescence) की घटना – प्रकाश का उत्सर्जन – को वैचारिक रूप से आयुर्वेद में पित्त दोष कारक की अभिव्यक्ति के रूप में देखा जा सकता है। पित्त दीप्तिमान और परिवर्तनकारी विशेषताओं के लिए जिम्मेदार है। यह प्रकाश मुख्य रूप से विब्रियो (Vibrio), फोटोबैक्टीरियम (Photobacterium) और एलिविब्रियो (परिवार वाइब्रियोनेसी) [Aliivibrio (family Vibrionaceae)] जैसे वंश के बैक्टीरिया द्वारा, साथ ही शेवानेला (Shewanella) और फोटोरैबडस (Photorhabdus) द्वारा उत्पन्न होता है। एलिविब्रियो फिशेरी (Aliivibrio fischeri) और विब्रियो हार्वेई (Vibrio harveyi) सहित प्रमुख चमकदार प्रजातियां, लक्स ऑपेरॉन नामक एक आनुवंशिक प्रणाली के माध्यम से यह प्रकाश उत्पन्न करती हैं। माइक्रोबायोलॉजी में आयुर्वेदिक सिद्धांतों के वैचारिक अनुप्रयोग के अनुरूप, अमीबॉइड (Amoeboid) गति और बैक्टीरियल लोकोमोशन (गतिशीलता) को वात दोष कारक के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है। वात, जो शरीर के भीतर सभी गति, परिसंचरण और परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए जाना जाता है, वैचारिक रूप से सूक्ष्मजीवों में देखी जाने वाली गतिशील, तेज और अक्सर अप्रत्याशित गति के साथ संरेखित होता है। इसमें अमीबॉइड गति (स्यूडोपोड्स का उपयोग करके) शामिल है। बैक्टीरियल लोकोमोशन (फ्लैजीला, ग्लाइडिंग, या ट्विचिंग के माध्यम से)। डॉ. चक्रधर फ्रेंड का वैदिक माइक्रोबायोलॉजी के क्षेत्र में समर्पण लगभग तीन दशकों से है, जिसकी शुरुआत उनके अंडरग्रेजुएट पढ़ाई (1996-1999) के दौरान हुई और पोस्टग्रेजुएट सालों (1999-2001) से लेकर आज तक जारी है। इस क्षेत्र में उनके व्यापक रिसर्च का नतीजा यह हुआ है कि उन्होंने वैदिक माइक्रोबायोलॉजी पर कई महत्त्वपूर्ण पुस्तकें लिखी हैं, जिससे प्राचीन वैदिक ज्ञान को आधुनिक माइक्रोबियल साइंस के साथ जोड़ने में महत्वपूर्ण योगदान मिला है।

इस अवसर पर डॉ. चक्रधर फ्रेण्ड,  डॉ. सागी सत्यनारायण और डॉ. नीरज भारद्वाज द्वारा लिखित पुस्तक – ‘वैदिक वाटर माइक्रोबायोलॉजी’ का विधिवत् विमोचन हुआ ।  डॉ. चक्रधर फ्रेण्ड ने बताया की इस पुस्तक में वेद, पुराण, उपनिषद्, आयुर्वेद, वास्तु, ज्योतिष विज्ञान को समाहित / मन्थन किया गया है । यह पुस्तक वैदिक सूक्ष्मजीवविज्ञान को नवाचार और अन्वेषण के दिशा में  नया उर्जा प्रदान करेगा। डॉ. श्रीजी कुरूप ने समुन्द्र विज्ञान, सूक्ष्मजीवविज्ञान और आध्यात्म पर विशेष प्रस्तुतिकरण दिया । चित्रा चौधरी जो वैदिक माइक्रोबायोलॉजी वर्चुअल यूनिवर्सिटी से वैदिक फायर (अग्नि) माइक्रोबायोलॉजी पर पीएचडी कर रहीं है, उन्होंने अपने शोध के विषय में दर्शकों  को अवगत कराया ।      

दीक्षांत समारोह : वैदिक माइक्रोबायोलॉजी वर्चुअल यूनिवर्सिटी के अथर्वकण्वकुलाधिपति डॉ. चक्रधर फ्रेण्ड जी एवं डॉ. श्रीजी कुरूप द्वारा थाईलैंड के डॉ. स्वामी श्री भानुपुत्र मंगलानंद जी महाराज (सुरेन्द्र राजभाट यूनिवर्सिटी, थाईलैंड) को वैदिक माइक्रोबायोलॉजी में होनोररी डॉक्टरेट प्रदान की गई ।

पुरस्कार  : डॉ. नीरज भारद्वाज जी को वैदिक वाटर माइक्रोबायोलॉजी पुस्तक के लिए ग्लोबल वैदिक माइक्रोबायोलॉजी एक्सीलेंस अवार्ड प्रदान किया गया ।

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